कहानी --मेरी बेटी लक्ष्मी,,
"अरे चलो-चलो स्कूल का समय हो गया है,विभव ने अपनी बेटियों रिया और रानी से बैग उठाते हुए कहा । तभी दरवाजे पर स्कूल वैन की हाॅर्न सुनाई दी । पहले ऑफिस घर के पास था लेकिन ट्रांसफर के बाद ऑफिस घर से बहुत दूर हो गया था जिस कारण से विभव को घर से जल्दी निकलना पड़ता था । ऑफिस आने -जाने के लिए रोज लोकल ट्रेन पकड़ना और कभी आराम से बैठ कर, कभी खड़े हो कर सफर करने की आदत सी हो गई थी । आज कुछ हलचल सी दिखाई दी प्लेटफार्म पर देखते ही देखते पचास -साठ लोग इक्कठा हो गये ।विभव ने पूछा यह भीड़ कैसी है। भीड़ में से आवाज़ आई सर जी, कोई व्यक्ति नवजात बिटिया को यहां कपड़े में लपेटकर छोड़ गया है।विभव ने मन ही मन में यह सवाल किया कहते हैं बेटियां लक्ष्मी का रुप होती हैं फिर इनके साथ यह कैसा अन्याय?
विभव के मन में यह विचार आया रिया और रानी तो हैं क्यों न इस बिटिया को भगवान का उपहार समझ कर अपना लूं।विभव ने श्रद्धा भाव से विचार किया और साहस जुटा कर आगे बढ़ा भीड़ की विस्फरित आंखें उसे भीड़ से निकलता हुआ देख रहीं थीं, तभी एक आवाज आई।
आवाज में करुणा थी।
मेरा नाम केशव राम है। मैं एक गरीब मजदूर हूं। मैं निःसंतान हूं मुझ पर दया करें। नवजात को उठाया और गले से लिपटा कर रोने लगा मानो कोई पिता बहुत दिनों के बाद अपनी बिछुड़ी हुई बेटी से मिल रहा हो । बार-बार उसकी पीठ पर हाथ फेरता।
विभव को केशव राम दुनिया का सबसे महान व्यक्ति दिखाई दे रहा था जो इंसानियत का पाठ पढ़ा रहा था...
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