First Hindi Kavita of my life

I couldn't believe when I saw this in a magazine  
शीर्षक, मैं नारी,
मैं नारी सुख की स्थिति कसक भरी
कभी सखी कभी मां कभी वधू 
कभी सहचरी।
शुचि नेपालीका सी फबती
घोर निराशा में दीया बनकर
अंधकार से जूझ रही 
मैं नारी।
गौरैया सी पंख फैलाकर
तृण-तृण से 
घर द्वार सजाती
जन्मदात्री अस्तित्व की सर्जक
संरक्षिता चिर- युवती चिरंतन
मैं नारी
बार-बार नये-नये रुपों में
उमड़ -उमड़ कर
तट तक आती ।
कन्या जन्म की पीड़ा सहती 
भ्रूण हत्या से मैं डरती
फिर भी निद्र्वन्द्व कंठ स्वर से 
मुक्ति का गाना गाती 
मैं नारी। 

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