मां का घर,,
मां का घर,,
एक लम्बे अरसे के बाद मां से मिलने का मौका मिला। मां की याद दाश्त भी कमज़ोर हो गई थी भूलने लगीं थीं। रह-रह कर नाम तो सबके याद आते थे लेकिन एक पाॅज लेने के बाद। जैसे ज्योति को रोती गगन को मगन । कभी -कभी तो सब के सब एक दम से हस पड़ते लेकिन मुझे मां पर दया आती। बुढ़ापे का यह लम्हा बहुत तकलीफ़ दे होता है। मां को सुनने में भी परेशानी हो रही थी । बार-बार ट्रेन का नाम पुछती जाने का समय पुछती फिर भूल जातीं ।मेरे मन में यह बात आती मां को कैसे समझाऊं कि हर बेटी मां से मिलने पैरोल पर आती है मां मुझे तो लौटना पड़ेगा।मेरे वापसी का समय आ गया था मैं ट्रेन में बैठे कर यही सोच रही थी मां बेटी के हिस्से में आंसू ही क्यों आते हैं
शादी के बाद मां का घर कब पीहर, नैहर,मायका,बन गया पता ही नहीं चला। मां को गुजरे तीन साल हो गए
मां अब सपने में,एलबम में यादों में है ।
वो बातें, यादें आज भी तड़पाती है यह अनोखा एहसास उतना ही गम से भर देने वाला भी है।
Comments
Post a Comment